Shikayat

Shikayat

Akki On The Mic

Альбом: Shikayat
Длительность: 3:30
Год: 2025
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Текст песни

मैं लिखने को बैठा था तेरी शिकायत अभी
फिर याद आया अपनों को बदनाम करते नहीं
ये दिल बोला, जाने दे, आँखों को प्यारी है वो
तो मैंने अपनी भी थोड़ी सी शर्तें रखीं
कि तेरे बिन अकेला ही सही मैं, अब न दूजा चाहिए
मैं आँखें बंद करके लेटूं, मुझको तू दिखाई दे
ये आँधी इश्क़ की जो ले गई है प्यार मेरा दूर
उसको ढूँढना है पलकों से, ये धूल हटाइए
मिलेगा वक़्त जो कभी तो ख़ुद से पूछना ज़रा
कि मेरी ग़लतियाँ थीं क्या जो दिल ये टूट सा गया है
तेरा अपना ही तो था मैं, मेरा नाम भी नहीं याद
और एक मैं हूँ जो अभी भी तुझको भूल न सका
मैं मेरी आख़िरी साँसों में हूँ ग़म
पर मेरी आख़िरी साँसों में भी तुम
मैं मेरी आख़िरी साँसों में हूँ ग़म
पर मेरी आख़िरी साँसों में भी तुम
मुसाफ़िर मैं मंज़िल की राहों में भटका हुआ
फिर याद आया मंज़िल है अब वो किसी और की
सोचा बुला लूं दोबारा, पर माँ ने कहा
कि ग़ैरों की चीज़ों पे हाथ अपना रखते नहीं
मैं लिखने को बैठा था तेरी शिकायत अभी
फिर याद आया अपनों को बदनाम करते नहीं
ये दिल बोला, “जाने दे, आँखों को प्यारी है वो”
तो मैंने अपनी भी थोड़ी सी शर्तें रखीं
मिलोगे कभी हमें सुनहरी फ़िज़ाओं में
तो एक बार ये हाथ मेरा थामना
तन्हा हूँ भीड़ में, ये दुनिया भी जीत के
चाहूं एक बार तुमसे हारना
क़लम मैं नशे में उठाने से डरता हूँ अब
कि छोड़ो, अब क्या ही किसी को रुलाना भला
वो सोते हैं बेफिक्र होकर, उन्हें क्या ख़बर
कि रातें शराबों में अपनी भी कटने लगीं
मैं लिखने को बैठा था तेरी शिकायत अभी
फिर याद आया अपनों को बदनाम करते नहीं
ये दिल बोला, “जाने दे, आँखों को प्यारी है वो
तो मैंने अपनी भी थोड़ी सी शर्तें रखीं
मैं लिखने को बैठा था तेरी शिकायत अभी
फिर याद आया अपनों को बदनाम करते नहीं
ये दिल बोला, “जाने दे, आँखों को प्यारी है वो
तो मैंने अपनी भी थोड़ी सी शर्तें रखीं