Parshvanath Stotra
Arohi Anil Agarkar
4:43प्रभु पतित पावन मैं अपावन, चरण आयो सरण जी यों विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरण जी तुम ना पिछान्यो आन मान्यो, देव विविध प्रकार जी या बुद्धि सेती निज ना जान्यो, भ्रम गिन्यो हितकार जी भव विकट वन में करम बैरी, ज्ञान धन मेरो हरयो तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होए, अनिष्ट गति धरतो फिरयो धन्य घड़ी यो धन्य दिवस यो ही, धन्य जनम मेरो भयो अब भाग्य मेरो उदय आयो, दरश प्रभु जी को लाख लयो छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासा पै धरें वसु प्रातिहार्य अनंत गुण जुट, कोटि रवि छवि को धरें मिट गयो तिमिर मिथ्यात मेरो, उदय रवि आतम भयो मो उर हरष एसो भयो, मनु रंक चिंतामणि लयो दुई हाथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुम चरण जी सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारण तरन जी जाचूँ नहीं सुरवास पुनि, नर राज परिजन साथ जी "बुध" जाचहूँ तुम भक्ति भव भव, दीजिये शिवनाथ जी