Hanuman Chalisa Superfast
Brijesh Shandilya
4:17॥ दोहा ॥ सिर नवाइ बगलामुखी लिखूं चालीसा आज ॥ कृपा करहु मोपर सदा पूरन हो मम काज ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय श्री बगला माता । आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥ बगला सम तब आनन माता । एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥ शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । असतुति करहिं देव नर-नारी ॥ पीतवसन तन पर तव राजै । हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥ 4 ॥ तीन नयन गल चम्पक माला । अमित तेज प्रकटत है भाला ॥ रत्न-जटित सिंहासन सोहै । शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥ आसन पीतवर्ण महारानी । भक्तन की तुम हो वरदानी ॥ पीताभूषण पीतहिं चन्दन । सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ 8 ॥ एहि विधि ध्यान हृदय में राखै । वेद पुराण संत अस भाखै ॥ अब पूजा विधि करौं प्रकाशा । जाके किये होत दुख-नाशा ॥ प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । पीतवसन देवी पहिरावै ॥ कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥ माल्य हरिद्रा अरु फल पाना । सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥ धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम-सहित तब करै आरती ॥ अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे । पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥ मातु भगति तब सब सुख खानी । करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥ त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥ बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं । अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥ पूजनांत में हवन करावै । सा नर मनवांछित फल पावै ॥ सर्षप होम करै जो कोई । ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥ तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै । भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥ दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥ फूल अशोक हवन जो करई । ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥ फल सेमर का होम करीजै । निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥ गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ॥ गुग्गुल तिल संग होम करावै । ताको सकल बंध कट जावै ॥ बीलाक्षर का पाठ जो करहीं । बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥ एक मास निशि जो कर जापा । तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥ घर की शुद्ध भूमि जहं होई । साध्का जाप करै तहं सोई ॥ सेइ इच्छित फल निश्चय पावै । यामै नहिं कदु संशय लावै ॥ अथवा तीर नदी के जाई । साधक जाप करै मन लाई ॥ दस सहस्र जप करै जो कोई । सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥ जाप करै जो लक्षहिं बारा । ताकर होय सुयशविस्तारा ॥ जो तव नाम जपै मन लाई । अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥ सप्तरात्रि जो पापहिं नामा । वाको पूरन हो सब कामा ॥ नव दिन जाप करे जो कोई । व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥ ध्यान करै जो बन्ध्या नारी । पावै पुत्रादिक फल चारी ॥ प्रातः सायं अरु मध्याना । धरे ध्यान होवैकल्याना ॥ कहं लगि महिमा कहौं तिहारी । नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥ पाठ करै जो नित्या चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ 40 ॥ ॥ दोहा ॥ सन्तशरण को तनय हूं कुलपति मिश्र सुनाम । हरिद्वार मण्डल बसूं धाम हरिपुर ग्राम ॥ उन्नीस सौ पिचानबे सन् की श्रावण शुक्ला मास । चालीसा रचना कियौ तव चरणन को दास ॥