Hanuman Chalisa Superfast
Brijesh Shandilya
4:17॥ दोहा ॥ जगत जननि जगदम्बिके, अरज सुनहु अब मोर। बन्दौ पद-जुग नाइ सिर, विनय करौं कर जोर।। ॥ चौपाई ॥ जय जय जय संकटा भवानी । कृपा करहु मोपर महारानी ।। हाथ खड्ग भृकुटी विकराला । अरुण नयन गल में मुण्डमाला ।। कानन कुण्डल की छवि भारी। हिय हुलसे मन होत सुखारी ।। केहरि वाहन है तव माता। कष्ट निवारो जन-जन त्राता ।। आयउ शरण तिहारो अम्बे । अभय करहु मोको जगदम्बे ।। शरण आइ जो तुमहिं पुकारा। बिन बिलम्ब तुम ताहि उबारा ।। भीर पड़ी भक्तन पर जब-जब । किया सहाय मातु तुम तब-तब ।। रक्तबीज दानव तुम मारे। शुम्भ-निशुम्भ के उदर बिदारे ।। महिषासुर नृप अति बलवीरा। मारे मरे न अति रणधीरा ।। करि संग्राम सकल सुर हारे। अस्तुति करि तब तुमहिं पुकारे ।। प्रगटेउ कालि रूप में माता। सेन सहित तुम ताहि निपाता ।। तेहि के बध सब देवन हरषे। नभ-दुन्दुभि सुमन बहु बरसे ।। रक्षा करहु दीन जन जानी। जय जय जगदम्ब भवानी ।। सब जीवों की हो प्रतिपालक । जय जगजननि दनुज कुल घालक ।। सकल सुमन की जीवन दाता। संकट हरो हमारी माता ।। संकटनाशक नाम तुम्हारा। सुयश तुम्हार सकल संसारा ।। सुर नर नाग असुर मुनि जेते। गावत गुणगान निशदिन ते ते।। योगी निशिवासर तव ध्यावहिं । तदपि तुम्हार अन्त न पावहिं ॥ अतुल तेज मुख पर छवि सोहै । निरखि सकल सुर नर मुनि मोहै ।। चरण कमल मैं शीश झुकाऊँ । पाहि पाहि कहि नितहि मनाऊँ ।। नेति नेति कहा वेद बखाना। शक्ति-स्वरूप तुम्हार न जाना।। मैं मूरख किमि कहौं बखानी। नाम तुम्हारा अनेक भवानी ।। सुमिरत नाम कटै दुःख भारी। सत्य बात यह वेद उचारी ।। नाम तुम्हार लेत जो कोई। ताको भय संकट नहिं होई ।। संकट आय परै जो कबहीं। नाम लेत बिनसत है तबहीं।। प्रेम-सहित जो जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा ।। शरणागत होइ जो जन आवैं। मनवांछित फल तुरतहिं पावैं ।। रणचण्डी बन असुर संहारा। बन्धन काटि कियो छुटकारा ।। नाम सकल कलि-कलुष नसावन। सुमिरत सिद्ध होय नर पावन ।। षोडश पूजन करै जो कोई । इच्छित फल पावै नर सोई ।। जो नारी सिन्दूर चढ़ावै। तासु सोहाग अचल होइ जावै ।। पुत्र हेतु जो पूजा करहीं। सन्तति-सुख निश्चय सो लहहीं ।। और कामना करै जो कोई। ताके घर सुख-सम्पति होई ।। निर्धन नर जो शरण में आवै । सो निश्चय धनवान कहावै ।। रोगी रोग मुक्त होइ जावै। तव चरणन जो ध्यान लगावै ।। सब सुख-खानि तुम्हारी पूजा। एहि सम आन उपाय न दूजा ।। पाठ करै संकटा चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीसा ।। पाठ करै अरु सुनै सुनावै। वाको सब संकट मिटि जावै ।। कहां तक महिमा कहौं तुम्हारी। हरहु वेगि मोहिं संकट भारी ।। मम कारज सब पूरन किजे। दीन जनि मोहिं अभय कर दीजे ।। तोहि विनय करूं मैं बारम्बारा। छमहूँ सकल अपराध हमारा ।। ॥ दोहा ॥ मातु संकटा नाम तव, संकट हरहु हमार। होइ प्रसन्न निज दास पर, लीजै मोहिं उबार ।।