Zindagi Kya Hai

Zindagi Kya Hai

Jagjit Singh

Альбом: Koi Baat Chale
Длительность: 4:57
Год: 2006
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Текст песни

आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर
टूटता भी है, डूबता भी है
फिर उभरता है, फिर से बहता है

ना समंदर निगल सका इसको
ना तवारीख़ तोड़ पाई है
वक्त की मौज पर सदा बहता
आदमी बुलबुला है पानी का

ज़िंदगी क्या है जानने के लिए
ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है
आज तक कोई भी रहा तो नहीं

सारी वादी उदास बैठी है
मौसम-ए-गुल ने ख़ुदकुशी कर ली
किसने बारूद बोया बाग़ों में?

आओ, हम सब पहन लें आईने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सब को सारे हसीं लगेंगे यहाँ

है नहीं जो दिखाई देता है
आईने पर छपा हुआ चेहरा
तर्जुमा आईने का ठीक नहीं

हम को Ghalib ने ये दुआ दी थी
तुम सलामत रहो १००० बरस
ये बरस तो फ़क़त दिनों में गया

लब तेरे Meer ने भी देखे हैं
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
बातें सुनते तो Ghalib हो जाते

ऐसे बिखरे हैं रात-दिन, जैसे...
मोतियों वाला हार टूट गया
तुम ने मुझ को पिरो के रखा था
तुम ने मुझ को पिरो के रखा था