दर्पन देखत मुख छिपै, माया देखे नाहिं | कबीर अमृतवाणी | Kabir Amritvani | Kabir Bhajan | Kabir Das Ji

दर्पन देखत मुख छिपै, माया देखे नाहिं | कबीर अमृतवाणी | Kabir Amritvani | Kabir Bhajan | Kabir Das Ji

कबीर–पथ

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Текст песни

दर्पण में जो छुप जाए माया में वो प्रकट
अपना मानकर जो किया सब हुआ निष्फल

दर्पन देखत मुख छिपै माया देखे नाहिं
जो कुछ कीन्यो आपना सो कुछ होत नाहिं

आईने में मुंह दिखे तो शर्म से छुप जाते
पर माया के आईने में अपना रूप न पाते
मैं-मेरे का भाव जो मन में जड़ जमाए
उसकी परछाईं न दिखे कैसे सच्च बताए
जो कुछ भी अपना कहा वो सब मिट्टी-धूल
समय की आंधी आई तो उड़ गए सब फूल
दर्पण सच्चा बोलता झूठ न कहता कभी
माया का दर्पण टूटा हो तो दिखे असली छवि

माया का दर्पण तोड़ रे देख अपना सच्चा रूप
जो कुछ अपना माना है सब है केवल धूप

घमंड की दीवार खड़ी सत्य को ढंकती जाए
अहंकार का परदा गिरे तब आत्मा दिखाए
धन-संपत्ति मान-सम्मान ये सब बाहरी छाया
भीतर का असली धन तो छुपा रहा माया
जन्म-मृत्यु के बीच में खेल रचा संसारा
जो कुछ मैंने पाया है वो भी उसी का सारा
ममता के बंधन में बंधा भूल गया निज स्वरूप
माया के धागे टूटें तो मिले परम अनुभव

गुरु के वचन सुनो रे मन तोड़ो अज्ञान का जाल
सत्य दर्पण सामने धर देखो अपना हाल

श्वास-श्वास में बसा जो वो है नित्य सनातन
बाकी सब नश्वर लेकिन वो ही है शाश्वत धन
देह मिली माटी-पानी यह भी अस्थायी छाया
आत्मा का जो रूप है वो न जाने माया
अपना कुछ भी नहीं यहां सब है उधारी खेल
जो समझ गया इस सच को वो पार गया मेल
निर्मम होकर देख ले कितना छोटा संसार
अनंत के सामने खड़े क्या है अपना अधिकार

वैराग्य की आंख खोल देख सब कुछ स्वप्न समान
अपना कुछ भी नहीं यहां यही परम विज्ञान

रोज सुबह उठकर देखो दर्पण में अपना चेहरा
फिर मन के आईने में भी करो आत्मा का मेला
जो कुछ भी संग्रह किया है उसे छोड़ने का अभ्यास
ममता के धागे काटकर करो मुक्ति का प्रयास
सेवा करो निःस्वार्थ भाव किसी का कुछ न मानो
दान करो मन खुशी से अपना कुछ न जानो
कबीर कहते सुनो साधो यही सच्ची साधना
अपनापन छोड़ दो तब मिलेगी आराधना

माया का दर्पण तोड़ रे देख अपना सच्चा रूप
जो कुछ अपना माना है सब है केवल धूप

जब टूटे अपनेपन का सारा भ्रम संजाल
तब दिखता निर्मल आत्मा छूटे माया जाल