Khush Ka Fas Mein / Rone Ka Tho Aalam (Live)

Khush Ka Fas Mein / Rone Ka Tho Aalam (Live)

Pankaj Udhas

Длительность: 7:00
Год: 1984
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Текст песни

ख़ुश क़फ़स में, ना आशियाने में
दिल सा दुश्मन नहीं ज़माने में
क्या बुरा है जो खुल के रो लीजे
सौ तकल्लुफ़ हैं मुल्कुराने में

रोने का तो आलम ऐसा था
रोने का तो आलम ऐसा था
हम झूम के सावन तक पहुँचे
दो-चार ही आँसू ऐसे थे
जो आप के दामन तक पहुँचे
रोने का तो आलम ऐसा था

वीराना हमारा क्या कम था
वीराना हमारा क्या कम था
क़िस्मत में अपनी जब ग़म था
हर फूल मिला काँटों की तरह
हम किसलिए गुलशन तक पहँचे
रोने का तो आलम ऐसा था

सोचा था सुकून कुछ पाएँगे
सोचा था सुकून कुछ पाएँगे
मालूम ना था पछताएँगे
ज़ुल्फ़ों के भरोसे चल के
हम पहुँचे भी तो उलझन तक पहुँचे
रोने का तो आलम ऐसा था

मतलब के अँधेरों में, आदम
सूरज भी नज़र कब आता है
मतलब के अँधेरों में, आदम
सूरज भी नज़र कब आता है
वो दोस्त थे मेरे अपने ही
जो मेरे ही दुश्मन तक पहुँचे
रोने का तो आलम ऐसा था

हम झूम के सावन तक पहुँचे
दो-चार ही आँसू ऐसे थे
जो आप के दामन तक पहुँचे
रोने का तो आलम ऐसा था
रोने का तो आलम ऐसा था