Shabaan
Parvaaz
4:58है मेरी ज़ात क्या मुझ को क्या यह पता शकल-ओ-सूरत पे लिखा है क्या क्यूँ कर मैं इंसान, कैसे कोई बलाह मैं मौज-ए-दरिया, बेपरवाह हूँ सदा है बेफ़िक्रे में क्यूँ डूबा सारा जहाँ किसपे भरोसा, किसका गीला है क़ैद दुनिया, फ़ितरत है महरुमा झूठा तस्सवउर सब का यहाँ या सुभान या हज़ूर बे-रंग ज़ाहिर, बातिं है क्यूँ सियाह बस एक तकल्लूफ, जाइज़ है यह खाला मैं सोज़-ए-गुल हूँ, नाघम-ए-बुलबुल जवान उड़ता फिरून मैं, घर मेरा आसमान या सुबान या हज़ूर मस्तान, मस्तान, मस्तान, मस्तान जी ने किया जो मैं घर से चालदिया फ़िकरों से गफील, मौजों सा मई रवाँ है हुकुम-ए-अव्वल, शाहिद है एक खुदा आवाज़ का दुश्मन ना सकी का हुमनावा क्यूँ कर मैं इंसान कैसे कोई बलाह मैं मौज-ए-दरिया हूँ सदह कर तंज़ बातों पे गर होश हैं मघरूर यूँ जीना यहाँ पे मारना यहाँ मस्तान, मस्तान, मस्तान हूँ मैं मस्तान