Lakshmi Chalisa Superfast

Lakshmi Chalisa Superfast

Rahul Pathak

Длительность: 5:12
Год: 2021
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Текст песни

मातू लक्ष्मी कारी कृपा, हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कारी, परुवाहु मेरी आसो॥
याही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुण।
सब विधि करौ सुवास, जय जननी जगदंबिका॥

सिंधु सूता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
तुम सामान नहीं कोई उपकारी।
सब विधि पूर्वाहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननी जगदम्बा।
सबकी तुम ही हो अवलंब॥
तुम ही हो सब घाट वासी।
विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिंधु कुमारी।
दिनों की तुम हो हितकारी॥
विनावों नित्या तुमाहिन महारानी।
कृपा करौ जग जननी भवानी॥
केही विधि स्तुति करौं तिहारी।
सुधी लिजई अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितावावो मम ओरि।
जगा जननी विनती सन मोरी ॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता।
संकट हारो हमारी माता॥
क्षीरसिंधु जब विष्णु मथायो।
चौदह रत्न सिंधु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखारासी।
सेवा कियो प्रभु बनी दासी॥
जब जब जन्म जहान प्रभु लिन्हा।
रूप बादल तहं सेवा किन्हा॥
स्वायन विष्णु जब नर तनु धारा।
लिन्हे अवधापुरी अवतार॥
तब तुम प्रगत जनकपुर माहिन।
सेवा कियो हृदय पुलकहिं॥
अपानया तोही अंतर्यामी।
विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सैम प्रबल शक्ति नहीं आनी।
कहां लाउ महिमा कहां बखानी॥
मन क्रम वचन करई सेवकाई।
मन इच्छा वंचित फल पै॥
ताजी छल कपाट और चतुराई।
पुजाहिन विविध भांती मन लाइ॥
और हाल मैं कहूं बुझाई।
जो यह पाठ करई मन लाइ॥
ताको कोई कश्ता नोई।
मन इच्छिता पवई फल सोइ॥
त्राही त्राहि जय दुख निवारिणी।
त्रिविध ताप भव बंधन हरिणी॥
जो चालीसा पदवे।
ध्यान लगाकर सुनै सुनवाय॥
ताकाउ कोई ना रोग सातवई।
पुत्र आदि धन सम्पति पवै॥
पुत्रहिन अरु संपत्ती हिना।
और बधिर कोढ़ी अति दिन॥
विप्रा बोला काई पाठ करावई।
शंका दिल में कभी ना लवाई॥
पाठ करवाई दिन चालीसा।
ता पर कृपा करैन गौरीसा॥
सुख संपत्ती बहुत सी पवई।
काम नहीं कहू की अवाई॥
बराह मास करई जो पूजा।
तेही सैम धन्या और नहीं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करई मन महिन।
उन सैम कोई जग में कहूं नहीं॥
बहुविधि क्या मैं करूँ बदाई।
लेया परीक्षा ध्यान लगा॥
कारी विश्वास करई व्रत नेमा।
होय सिद्ध उपजाई उर प्रेमा ॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी।
सब में व्यपिता हो गुन खानी॥
तुमारो तेज प्रबल जग महिन।
तुम सैम कौन दयालु कहूं नहीं ॥
मोहि अनाथ की सुधी अब लिजई।
संकट काटी भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चुक कारी क्षमा हमारी।
दर्शन दजाई दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्यकुल अधिकारी।
तुम्हारी अच्छा दुख सहते भारी॥
नहीं मोहिन ज्ञान बुद्धि है तन में।
सब जनता हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुजा कराके धरन।
कश्त मोर अब कराहु निवारण॥
केही प्रकर मैं करूँ बदाई।
ज्ञान बुद्धि मोहिन नहीं अधिकाई॥
त्राही त्राही दुख हरिणी, हारो वेगी सब ट्रस।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नशा॥
रामदास धारी ध्यान नीति, विनय करात कर जोर।
मातू लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोरी ॥