Shoorveer
Rapperiya Baalam
3:58कथा ये है महाराज मेरे की ,हिन्द का अमर उजाला था आन पे कर दिए प्राण न्योछावर लहूँ में जिसके ज्वाला था ! रणधीर वीर तूफ़ान चिर मेरे छत्रपति महाराज संभाजी बोले अतीत शत्रु अधीर जब चलते थे महाराज संभाजी खर ख़ंजर भर ज्वाला अंदर हवा से घोड़े उड़ते थे मर्त्यु करती ताण्डव रण में जब मर्द मराठा लड़ते थे चिंघाड़ सनातन की गूंजी और ध्वज केसरी लहरे थे ठोर ठोर थे घोर घाव और लहू से लथपथ चेहरे थे महाराज मेरे महाराज मेरे है छत्रपति महाराज संभाजी रक्त रवानी रगो में ऐसी रण में तप से आग लगादी महाराज मेरे महाराज मेरे है छत्रपति महाराज संभाजी रक्त रवानी रगो में ऐसी रण में तप से आग लगा दी ले साठ किलो तलवार ,युद्ध में शस्त्र शास्त्र विधवान , ख़ुद में साथ कलश का हाथ ,दुख में अमर हो गये नाम , जुग में काटता गर्दन गठबंधन वो माना ना कभी सर को झुकाना जाना ना कभी माना ना ,स्वराज का सपना पाला था काँपे दुश्मन काँपे शंभु राजे ,केसरी साजे ख़ाली करके इलाक़े भागे शत्रु क्षेत्र में गाजे बाजे राजे लड़ी लड़ाई 120 , लिया रामनगर रायगढ़ भी जीत थी भिन्न भिन्न भाषा की सिख ,आमेर से समझी राजनीत ना क्षणभर थमकर जमकर बरसे गड़ गड़ सर धर दर दर बिखरे साँस को तरसे भाग थे डर से ले तलवार महाराज जो निकले शिव शंकर के ध्यानी थे त्याग की अमर कहानी थे वो हिंदूवीर वो धर्म वीर वो शोर्य की परम निशानी थे महाराज मेरे महाराज मेरे है छत्रपति महाराज संभाजी रक्त रवानी रगो में ऐसी रण में तप से आग लगा दी महाराज मेरे महाराज मेरे है छत्रपति महाराज संभाजी रक्त रवानी रगो में ऐसी रण में तप से आग लगा दी क्रूर औरंगजेब अन्याय त्याचे अनेक प्याद्यांमागुन झाकत होता त्याने सिंह पाहिला होता हत्तीचे साखळदंड शंभुराजे तरी ना वाके शिवरायांचे ते रक्त शंभुराजे तरीही सक्त ऐसा सिंह जाहला होता ज्याने तक्त हलविला होता ऐसा सिंह जाहला होता ज्याने तक्त हलविला होता ऑरेंगज़ेब दे घुटने टेक जब ख़ाली हाथ लोटा हुसैन चाहे येन केन कोई प्रकारेण पक़डु उसको लू सुख और चैन क़िस्मत पलटी नियत बदली गणोजी शिर्के ने भेद दिया देख के मौक़ा करके धोखा वीर निहत्था घेर लिया महाराज को बांध फिर उल्टा ऊँट पे मार मार के घाव दिये आँखें नोची , पसली तोड़ी , सरियों से शरीर को दाग दिये फिर काट हाथ और पैर साथ नाखून बाल भी उखाड़ दिये फिर बदन पे झोंकी जलती सलाख़े वीर ना फिर भी आह करे चेहरे पे भय का भाव नहीं , चाहे आँखों में प्रकाश नहीं धन से बढ़कर हैं धर्म सदा , झुकने से गहरा घाव नहीं स्वराज में जीना बाण यही, है मान से बढ़कर प्राण नहीं पूजे दुनिया विरो की चिता कायर का कहीं सत्कार नहीं महाराज मेरे महाराज मेरे है छत्रपति महाराज संभाजी रक्त रवानी रगो में ऐसी रण में तप से आग लगा दी महाराज मेरे महाराज मेरे है छत्रपति महाराज संभाजी रक्त रवानी रगो में ऐसी रण में तप से आग लगा दी