Shri Krishna Govind Hare Murari
Ravindra Jain
8:56दुर्गम पर्वत मारग पे निज सेवक के संग आइए, स्वामी भक्त के काँधे पे आन विराजिए भक्त का मान बढ़ाइए, स्वामी ऐसे भक्त कहाँ? कहाँ जग में ऐसे भगवान? ऐसे भक्त कहाँ? कहाँ जग में ऐसे भगवान? काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान ओ, काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान राम पयो दधि हनुमत हंसा अति प्रसन्न सुनी नाथ प्रशंसा निशि-दिन रहत राम के द्वारे राम महा निधि कपि रखवारे रामचंद्र, हनुमान चकोरा चितवत रहत राम की ओरा भक्त-शिरोमणि ने भक्त-वत्सल को लिया पहचान भक्त-शिरोमणि ने भक्त-वत्सल को लिया पहचान काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान ओ, काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान राम-लखन अरु हनुमत वीरा मानहू पारखी संपुट हीरा तीनों होत सुशोभित ऐसे तीन लोक एक संग हों जैसे पुलकित गात नैन जल छायो अकथनीय सुख हनुमत पायो आज नही जग में कोई बजरंगी-सा धनवान आज नही जग में कोई बजरंगी-सा धनवान काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान ओ, काँधे पर दो वीर बिठाकर चले वीर हनुमान विद्यावान गुणी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हांकते कांपे दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते प्रभुवर से माँगो, सदा पद-सेवा को वरदान प्रभुवर से माँगो, सदा पद-सेवा को वरदान काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान ओ, काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान ओ, काँधे पर दोउ वीर बिठाकर चले वीर हनुमान