Rog
Darzi
5:41वह, धीमी धीमी सी है वह खोयी हुई सी वह रातों में ख़यालों में आती है वह पिघल गए हम जो फिसल गए उसकी आँखों से उसकी बातों से क्या हो गया होना था जो हो ही गया टूटा न रहा वह भी हँस गयी अंदर कही झूम गया झूम गया झूम गया झूम गया झूम गया झूम गया वह थी थी वह इक कली जो खिली मीठी मीठी सी उसकी सोच भी उसकी खोज भी थी वह सही भूले हुए हम थे कहीं छूटे हुए हम किताबों में बागानों में वह दिख गयी वह दिख गयी वह दिख गयी वह दिख गयी वह दिख गयी वह दिख गयी वह दिख गयी वह दिख गयी रंग बिरंगे चेहरे हैं इसके हज़ारों चाहे तोह छुले ना जाने कितने ज़माने उसकी आवाज़ सुनके खोले हैं कितने ख़ज़ाने अलफ़ाज़ बोले लगते हैं कितने सुहाने आएगा याद आएगा वह समा बीत गया उसकी साँसों में उसके ख़्वाबों में बह गया सूख गया जो पता भीग गया उसके मन भी छुपा है जो डर गया खुद से ही वह डर ही गया खुद से ही उभर बहारों में हवाओं में उड़ गया उड़ गया उड़ गया उड़ गया उड़ गया उड़ गया