Hanuman 2.0
Dipanshu Kashyap
2:57कलयुग का दानव आधी ये श्रृष्टि मैने राख कर दी तेरी भक्ति शक्ति लाचार कर दी युवा ये पीढ़ी बर्बाद कर दी... ऐसी वासना की मैने आग भर दी हद पाप की हां सब पार कर दी मैने खत्म नारी की लाज कर दी दुनिया ये सारी गुलाम कर ली अवतार ले ले चाहें तू कल्कि।। जीत रहा देख पल-पल मैं तू बसा हो चाहें कण-कण में मैं जन जन के चंचल मन में बचना मुश्किल इस दल-दल से न जीत सको इस शतरंज में ताकत मेरी ये नफरत है... ये भावहीन संसार हुआ हां देख देख मेरा छल बल ये।। देख देख मेरा ताप देख अब रूप मेरा विकराल देख दुनिया का होता क्या हाल देख रक्तों की बहती तू धार देख हां देख देख प्रलाप देख कलयुग की नारी का भाव देख ऐसी हां मैने कर दी है बुद्धि निर्वस्त्र इनका तू नाच देख।। द्वापर युग में आकर तूने द्रौपदी की थी लाज रखी अब वही नारी है देख कैसे सारी मर्यादा लांघ रहीं... इतिहास, धर्म है ज्ञात नहीं रिश्तों का भी सम्मान नहीं हां बिन ब्याह के देख कैसे गैरों संग खुद को बांट रहीं।। देख मैने कई कांड कर दिए बद से बदतर हालात कर दिए एक रावण था त्रेता युग में मैने तो पैदा यहां लाख कर दिए काम, क्रोध कई पाप भर दिए सब नशे में बर्बाद कर दिए रोक सकता क्या खाक मुझको खड़े ही तुझपे सवाल कर दिए।। मेरी फौज सारी जिहादी सोच जो धन्य भूमि तेरी देंगे तोड़ रग रग में इनकी नफरत का रोग दीमक की भांति फैले ये रोज इन सब में मुझको न देना दोष मुझे देते शक्ति तेरे ही लोग खुद का ही धर्म ये भूल बैठे सुन राम नाम करते हैं शोक।। धधक उठी तन मन प्राणों में ज्ञान यज्ञ की ज्वाला है होगा युग निर्माण नया अब कौन रोकने वाला है असुरों की छाती दहलेगी राम बाण जब छूटेंगे भस्मासुर मानव समाज के पत्थर से सिर फूटेंगे आज तीसरा नेत्र भयंकर शिव का खुलने वाला है गांडीवधार अर्जुन का तीर मेघों से बरसने वाला है गगन देख पाताल "दीप" जय हिंद गूंजने वाला है होगा युग निर्माण नया अब कौन रोकने वाला है।। मानवता जब मर जाए पानी हां सिर से बढ़ जाए जब कट्टरवादी गंदी सोचें देश खोखला कर जाए कोखों को सुनी कर जाए आतंक की नोक पे चढ़ जाए मासूम लोगों की जाने बन... लाशें धरती पे बिछ जाएं।। प्रतिघात करो फिर वार करो सब धर्म की एक आवाज बनो क्या हिन्दू मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई राष्ट्रवाद की ढाल बनो... महाभारत नव निर्माण करो गीता की वाणी याद करो हां धर्म स्थापना हेतु फिर पापी जन का संहार करो।। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मासंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥