Kalyug Ka Manav

Kalyug Ka Manav

Lucke

Альбом: Kalyug Ka Manav
Длительность: 3:57
Год: 2024
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Текст песни

विष्णु जिन बादशो को तू दानवो से बचा रहा है
कलयुग में वे स्वयं दानवो से पापी हो जाएँगे
और एक दिन ऐसा आएगा जब उनके पाप
धरती के सबसे बड़े दानव को जन्म देंगे
जिसके जागते ही सम्पूर्ण मानव जाती
हमेशा हमेशा के लिए सो जाएगी

मैं धूम्रपान का आदि हुँ
भोले को भांग चढ़ाता हूँ
प्रशाद में चढ़ाई भांग को
फिर मैं ही लेके जाता हुँ
फिर यार दोस्त बुलाता हूँ
ऐसा माहोल बनाता हूँ
चिलम में भरके माल को
महफ़िल में ही खो जाता हूँ
मंदिर तो आता जाता नहीं
ना पूजा ना में जाप करूँ
ना भगवद् गीता जानू में
क्यूँ रामायण का पाठ करूँ
पर तिलक लगाकर मस्तक पर
कभी कभी धर्म की बात करूँ
और प्रशंशनीय बनने को
दिखावे का राम राम करूँ

जाने ऐसा क्यूँ हूँ मैं
ना सुधारने का प्रयास करूँ
शनि मंगल को छोड़कर
मैं कभी भी मदिरापान करूँ
मैं वही हूँ यारो
जो खुलके बाज़ार में लड़की घूरता
मंदिर में बैठी माता को
मैं देवी समझ के पूजता
जब बाहर जाती बहन तो
मैं सदा जाने से रोकता
माहोल थोड़ा गंदा है
मैं बात बात पर टोकता
पर रोकूँ ना मैं ख़ुद को कभी
जब ख़ुद आवारा घूमता
मैं ख़ुद कभी ना सोचूँ कभी
पर नारी को जब देखता
मैं अपनी मां को मां मानुं
बहना को गहना मानुं मैं
पर बात पराई की आये
तब ना किसी का कहना मानुं मैं
यदि अत्याचार हो स्त्री पर
मोमबत्ती मैं भी जलाता हूँ
दुनिया को बदलना चाहुँ मैं
पर बदलना ख़ुद को पाता हुँ
मैं मज़े मज़े में कभी कभी
थोड़ी गाली भी दे देता हूँ
पर यदि मूझे दे कोई तो
मैं ख़ुद कभी ना सहता हुँ
उस पुतले वाले रावण को
हर बरस मज़े से जलाता हूँ
भीतर में बैठे रावण को
मैं सदा सुरक्षित पाता हूँ
परिवार पशु का खाकर
मैं ख़ुद चैन की नींद सोता हूँ
यदि अपना कोई मर जाये तो
मैं फुट फुट कर रोता हूँ
बकरा मुर्ग़ा मछली को
मैं बड़े शौक़ से खाता हूँ
जब बात आएगी गौ माता की
पशु प्रेमी बन जाता हूँ

इंसान नहीं हैवान हूँ मैं
जो जानवर खा जाता हूँ
मुर्ग़े की टंगड़ी मुख में रख
कुत्ते पर प्रेम दिखाता हूँ
मेरे लंबे लंबे दांत नहीं
ना पूरा पूरा दानव हूँ
इंसानी वेष में दिखता हूँ
मैं तो कलयुग का मानव हूँ
मैं तो कलयुग का मानव हूँ
मैं तो कलयुग का मानव हूँ

मेरे ही जैसो के कारण
आज गंदा ये समाज है
मेरे ही जैसो के कारण
आज होते सारे पाप है
मेरे ही जैसो के कारण
नारी आज लाचार है
मेरे ही जैसो के कारण
बढ़ता दुराचार है
मैं ऐसा ही हूँ यारों
मुझसे ज़्यादा ना तुम बात करो
यदि मिलना चाहो मुझसे तो
तुम भीतर अपने झाँक लो
तुम झाँको अंतर्मन में
तुम सारे ही ऐसे दिखते हो
भीतर से मन के मैले हो
सब व्यर्थ दिखावा करते हो
तुम काली माँ के नाम पर
पशुबलि दे देते हो
और सारे मांस को साथ में
सब मिल बाँट के खाते हो
घर से भरकें कचरे को
तुम नदी में फेंक जाते हो
फिर लौटा भरकें गंगाजल को
घर में लेके आते हो
ये कैसी तुम्हारी नीति है
तुम जाने कैसे ज्ञाता हो
ईश्वर को भी ना छोड़ा तुमने
विश्व के विधाता को
धुएँ से जोड़ा भोले को
रक्त से काली माता को
मदिरा से जोड़ा भैरव को
कर दिया कलंकित दाता को

सब सारे उल्टे कर्म करते
लेके धर्म के नाम को
धीरे धीरे बदनाम करते
सनातन की शान को

अरे सनातन तो वो है
जो महिला का मान सिखाता है
इंसानों में इंसानियत
यहाँ कोई ना मांस खाता है
सब दया भावना रखते है
पशुप्रेम किया जाता है
आदर से देखे बहनों को
नारी को पूजा जाता है

नारी के रक्षण हेतू
यहाँ मुण्ड काट दिये जाते है
रामायण महाभारत
महा संग्राम किए जाते है
सनातन तो वो है
जो कण कण की पूजा करता है
लगाव रखे हर प्राणी से
हर जीव की रक्षा करता है

पर देखो इस समाज को
अब कैसी इनकी सोच है
जीव का भक्षण करके
किंचित् करते ना संकोच है
दया भावना रखो यारों
है विनती मेरी समाज से
जो सुन रहा इस गीत को
वो बदल लो ख़ुद को आज से

समाज बदल नहीं सकता
मैं ख़ुद को बदल तो सकता हूँ
तो क्यूँ ना बदलूँ आज से
जब आज ही कर सकता हूँ
परमात्मा का अंश हूँ
जो चाहुँ वो कर सकता हूँ
सब छोड़के सारे बुरे कर्म
लो मानवता पर चलता हूँ
क्यूँ इंतज़ार करे हम सब
श्रीकृष्ण के अवतार का
सब मिलकर हम निर्माण करे
नव-सतयुग से समाज का
जहाँ पशु को पूजा जाता हो
और मांस कोई ना खाता हो
हर मानव में मानवता हो
ना मानवता दिखावा हो
ना मानवता दिखावा हो, ना मानवता दिखावा हो