Duvidha
Lucke
3:02विष्णु जिन बादशो को तू दानवो से बचा रहा है कलयुग में वे स्वयं दानवो से पापी हो जाएँगे और एक दिन ऐसा आएगा जब उनके पाप धरती के सबसे बड़े दानव को जन्म देंगे जिसके जागते ही सम्पूर्ण मानव जाती हमेशा हमेशा के लिए सो जाएगी मैं धूम्रपान का आदि हुँ भोले को भांग चढ़ाता हूँ प्रशाद में चढ़ाई भांग को फिर मैं ही लेके जाता हुँ फिर यार दोस्त बुलाता हूँ ऐसा माहोल बनाता हूँ चिलम में भरके माल को महफ़िल में ही खो जाता हूँ मंदिर तो आता जाता नहीं ना पूजा ना में जाप करूँ ना भगवद् गीता जानू में क्यूँ रामायण का पाठ करूँ पर तिलक लगाकर मस्तक पर कभी कभी धर्म की बात करूँ और प्रशंशनीय बनने को दिखावे का राम राम करूँ जाने ऐसा क्यूँ हूँ मैं ना सुधारने का प्रयास करूँ शनि मंगल को छोड़कर मैं कभी भी मदिरापान करूँ मैं वही हूँ यारो जो खुलके बाज़ार में लड़की घूरता मंदिर में बैठी माता को मैं देवी समझ के पूजता जब बाहर जाती बहन तो मैं सदा जाने से रोकता माहोल थोड़ा गंदा है मैं बात बात पर टोकता पर रोकूँ ना मैं ख़ुद को कभी जब ख़ुद आवारा घूमता मैं ख़ुद कभी ना सोचूँ कभी पर नारी को जब देखता मैं अपनी मां को मां मानुं बहना को गहना मानुं मैं पर बात पराई की आये तब ना किसी का कहना मानुं मैं यदि अत्याचार हो स्त्री पर मोमबत्ती मैं भी जलाता हूँ दुनिया को बदलना चाहुँ मैं पर बदलना ख़ुद को पाता हुँ मैं मज़े मज़े में कभी कभी थोड़ी गाली भी दे देता हूँ पर यदि मूझे दे कोई तो मैं ख़ुद कभी ना सहता हुँ उस पुतले वाले रावण को हर बरस मज़े से जलाता हूँ भीतर में बैठे रावण को मैं सदा सुरक्षित पाता हूँ परिवार पशु का खाकर मैं ख़ुद चैन की नींद सोता हूँ यदि अपना कोई मर जाये तो मैं फुट फुट कर रोता हूँ बकरा मुर्ग़ा मछली को मैं बड़े शौक़ से खाता हूँ जब बात आएगी गौ माता की पशु प्रेमी बन जाता हूँ इंसान नहीं हैवान हूँ मैं जो जानवर खा जाता हूँ मुर्ग़े की टंगड़ी मुख में रख कुत्ते पर प्रेम दिखाता हूँ मेरे लंबे लंबे दांत नहीं ना पूरा पूरा दानव हूँ इंसानी वेष में दिखता हूँ मैं तो कलयुग का मानव हूँ मैं तो कलयुग का मानव हूँ मैं तो कलयुग का मानव हूँ मेरे ही जैसो के कारण आज गंदा ये समाज है मेरे ही जैसो के कारण आज होते सारे पाप है मेरे ही जैसो के कारण नारी आज लाचार है मेरे ही जैसो के कारण बढ़ता दुराचार है मैं ऐसा ही हूँ यारों मुझसे ज़्यादा ना तुम बात करो यदि मिलना चाहो मुझसे तो तुम भीतर अपने झाँक लो तुम झाँको अंतर्मन में तुम सारे ही ऐसे दिखते हो भीतर से मन के मैले हो सब व्यर्थ दिखावा करते हो तुम काली माँ के नाम पर पशुबलि दे देते हो और सारे मांस को साथ में सब मिल बाँट के खाते हो घर से भरकें कचरे को तुम नदी में फेंक जाते हो फिर लौटा भरकें गंगाजल को घर में लेके आते हो ये कैसी तुम्हारी नीति है तुम जाने कैसे ज्ञाता हो ईश्वर को भी ना छोड़ा तुमने विश्व के विधाता को धुएँ से जोड़ा भोले को रक्त से काली माता को मदिरा से जोड़ा भैरव को कर दिया कलंकित दाता को सब सारे उल्टे कर्म करते लेके धर्म के नाम को धीरे धीरे बदनाम करते सनातन की शान को अरे सनातन तो वो है जो महिला का मान सिखाता है इंसानों में इंसानियत यहाँ कोई ना मांस खाता है सब दया भावना रखते है पशुप्रेम किया जाता है आदर से देखे बहनों को नारी को पूजा जाता है नारी के रक्षण हेतू यहाँ मुण्ड काट दिये जाते है रामायण महाभारत महा संग्राम किए जाते है सनातन तो वो है जो कण कण की पूजा करता है लगाव रखे हर प्राणी से हर जीव की रक्षा करता है पर देखो इस समाज को अब कैसी इनकी सोच है जीव का भक्षण करके किंचित् करते ना संकोच है दया भावना रखो यारों है विनती मेरी समाज से जो सुन रहा इस गीत को वो बदल लो ख़ुद को आज से समाज बदल नहीं सकता मैं ख़ुद को बदल तो सकता हूँ तो क्यूँ ना बदलूँ आज से जब आज ही कर सकता हूँ परमात्मा का अंश हूँ जो चाहुँ वो कर सकता हूँ सब छोड़के सारे बुरे कर्म लो मानवता पर चलता हूँ क्यूँ इंतज़ार करे हम सब श्रीकृष्ण के अवतार का सब मिलकर हम निर्माण करे नव-सतयुग से समाज का जहाँ पशु को पूजा जाता हो और मांस कोई ना खाता हो हर मानव में मानवता हो ना मानवता दिखावा हो ना मानवता दिखावा हो, ना मानवता दिखावा हो