Fastest Kali Chalisa
Kuldeep Shukla
4:08अपना मस्तक काट कर, लीन्ह हाथ में थाम । कमलासन पर पग तले, दलित हुए रतिकाम ॥ जगतारण ही काम है, रजरप्पा है धाम । छिन्नमस्तका को करूं, बारंबार प्रणाम ॥ जय गणेश जननी गुण खानी । जयति छिन्नमस्तका भवानी ॥१॥ गौरी सती उमा रुद्राणी । जयति महाविद्या कल्याणी ॥२॥ सर्वमंगला मंगलकारी । मस्तक खड्ग धरे अविकारी ॥३॥ रजरप्पा में वास तुम्हारा । तुमसे सदा जगत उजियारा ॥४॥ तुमसे जगत चराचर माता । भजें तुम्हें शिव विष्णु विधाता ॥५॥ यति मुनीन्द्र नित ध्यान लगावें । नारद शेष नित्य गुण गावें ॥६॥ मेधा ऋषि को तुमने तारा । सूरथ का सौभाग्य निखारा ॥७॥ वैश्य समाधि ज्ञान से मंडित । हुआ अंबिके पल में पंडित ॥८॥ रजरप्पा का कण-कण न्यारा । दामोदर पावन जल धारा ॥९॥ मिली जहां भैरवी भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥१०॥ जय शैलेश सुता अति प्यारी । जया और विजया सखि प्यारी ॥११॥ संगम तट पर गई नहाने । लगी सखियों को भूख सताने ॥१२॥ तब सखियन ने भोजन मांगा । सुन चित्कार जगा अनुरागा ॥१३॥ निज सिर काट तुरत दिखलाई । अपना शोणित उन्हें पिलाई ॥१४॥ तबसे कहें सकल बुध ज्ञानी । जयतु छिन्नमस्ता वरदानी ॥१५॥ तुम जगदंब अनादि अनन्ता । गावत सतत वेद मुनि सन्ता ॥१६॥ उड़हुल फूल तुम्हें अति भाये । सुमन कनेर चरण रज पाये ॥१७॥ भंडारदह संगम तट प्यारे । एक दिवस एक विप्र पधारे ॥१८॥ लिए शंख चूड़ी कर माला । आयी एक मनोरम बाला ॥१९॥ गौर बदन शशि सुन्दर मज्जित । रक्त वसन शृंगार सुसज्जित ॥२०॥ बोली विप्र इधर तुम आओ । मुझे शंख चूड़ी पहनाओ ॥२१॥ बाला को चूड़ी पहनाकर । चला विप्र अतिशय सुख पाकर ॥२२॥ सुनहु विप्र बाला तब बोली । जटिल रहस्य पोटली खोली ॥२३॥ परम विचित्र चरित्र अखंडा । मेरे जनक जगेश्वर पंडा ॥२४॥ दाम तोहि चूड़ी कर देंगे । अति हर्षित सत्कार करेंगे ॥२५॥ पहुंचे द्विज पंडा के घर पर । चकित हुए वह भी सब सुनकर ॥२६॥ दोनों भंडार दह पर आये । छिन्नमस्ता का दर्शन पाये ॥२७॥ उदित चंद्रमुख शोषिण वसनी । जन मन कलुष निशाचर असनी ॥२८॥ रक्त कमल आसन सित ज्वाला । दिव्य रूपिणी थी वह बाला ॥२९॥ बोली छिन्नमस्तका माई । भंडार दह हमरे मन भाई ॥३०॥ जाको विपदा बहुत सतावे । दुर्जन प्रेत जिसे धमकावे ॥३१॥ बढ़े रोग ऋण रिपु की पीरा । होय कष्ट से शिथिल शरीरा ॥३२॥ तो नर कबहूं न मन भरमावे । तुरत भाग रजरप्पा आवे ॥३३॥ करे भक्ति पूर्वक जब पूजा । सुखी न हो उसके सम दूजा ॥३४॥ उभय विप्र ने किन्ह प्रणामा । पूर्ण भये उनके सब कामा ॥३५॥ पढ़े छिन्नमस्ता चालीसा । अंबहि नित्य झुकावहिं सीसा ॥३६॥ ता पर कृपा मातु की होई । फिर वह करै चहे मन जोई ॥३७॥ मैं अति नीच लालची कामी । नित्य स्वार्थरत दुर्जन नामी ॥३८॥ छमहुं छिन्नमस्ता जगदम्बा । करहुं कृपा मत करहुं विलंबा ॥३९॥ विनय दीन आरत सुत जानी । करहुं कृपा जगदंब भवानी ॥४०॥ जयतु वज्र वैरोचनी, जय चंडिका प्रचंड । तीन लोक में व्याप्त है, तेरी ज्योति अखंड ॥ छिन्नमस्तके अम्बिके, तेरी कीर्ति अपार । नमन तुम्हें शतबार है, कर मेरा उद्धार ॥