Fastest Shiv Chalisa
Kuldeep Shukla
3:13॥ दोहा ॥ जय काली जगदम्ब जय,हरनि ओघ अघ पुंज। वास करहु निज दास के,निशदिन हृदय निकुंज॥ जयति कपाली कालिका,कंकाली सुख दानि। कृपा करहु वरदायिनी,निज सेवक अनुमानि॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय काली कंकाली।जय कपालिनी, जयति कराली॥ शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा।जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा॥ आर्या, हला, अम्बिका, माया।कात्यायनी उमा जगजाया॥ गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी।दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी॥ पार्वती मंगला भवानी।विश्वकारिणी सती मृडानी॥ सर्वमंगला शैल नन्दिनी।हेमवती तुम जगत वन्दिनी॥ ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय।महारात्रि जय मोहरात्रि जय॥ तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका।कूष्माण्डा कार्तिका चण्डिका॥ तारा भुवनेश्वरी अनन्या।तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या॥ धूमावती षोडशी माता।बगला मातंगी विख्याता॥ तुम भैरवी मातु तुम कमला।रक्तदन्तिका कीरति अमला॥ शाकम्भरी कौशिकी भीमा।महातमा अग जग की सीमा॥ चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री।ब्रह्मवादिनी मां गायत्री॥ रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला।अग्निज्वाला तुम सर्वमंगला॥ मेघस्वना तपस्विनि योगिनी।सहस्राक्षि तुम अगजग भोगिनी॥ जलोदरी सरस्वती डाकिनी।त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी॥ पुष्टि तुष्टि धृति स्मृति शिव दूती।कामाक्षी लज्जा आहूती॥ महोदरी कामाक्षि हारिणी।विनायकी श्रुति महा शाकिनी॥ अजा कर्ममोही ब्रह्माणी।धात्री वाराही शर्वाणी॥ स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी।मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी॥ नाम रूप गुण अमित तुम्हारे।शेष शारदा बरणत हारे॥ तनु छवि श्यामवर्ण तव माता।नाम कालिका जग विख्याता॥ अष्टादश तब भुजा मनोहर।तिनमहँ अस्त्र विराजत सुन्दर॥ शंख चक्र अरू गदा सुहावन।परिघ भुशण्डी घण्टा पावन॥ शूल बज्र धनुबाण उठाए।निशिचर कुल सब मारि गिराए॥ शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे।रक्तबीज के प्राण निकारे॥ चौंसठ योगिनी नाचत संगा।मद्यपान कीन्हैउ रण गंगा॥ कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि।दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि॥ कर खप्पर त्रिशूल भयकारी।अहै सदा सन्तन सुखकारी॥ शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा।बजत मृदंग भेरी के बाजा॥ रक्त पान अरिदल को कीन्हा।प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा॥ लपलपाति जिव्हा तव माता।भक्तन सुख दुष्टन दु:ख दाता॥ लसत भाल सेंदुर को टीको।बिखरे केश रूप अति नीको॥ मुंडमाल गल अतिशय सोहत।भुजामल किंकण मनमोहन॥ प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी।जगदम्बा कहि वेद बखानी॥ तुम मशान वासिनी कराला।भजत तुरत काटहु भवजाला॥ बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर।जहाँ बिराजत विविध रूप धर॥ विन्धवासिनी कहूँ बड़ाई।कहँ कालिका रूप सुहाई॥ शाकम्भरी बनी कहँ ज्वाला।महिषासुर मर्दिनी कराला॥ कामाख्या तव नाम मनोहर।पुजवहिं मनोकामना द्रुततर॥ चंड मुंड वध छिन महं करेउ।देवन के उर आनन्द भरेउ॥ सर्व व्यापिनी तुम माँ तारा।अरिदल दलन लेहु अवतारा॥ खलबल मचत सुनत हुँकारी।अगजग व्यापक देह तुम्हारी॥ तुम विराट रूपा गुणखानी।विश्व स्वरूपा तुम महारानी॥ उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण।करहु दास के दोष निवारण॥ माँ उर वास करहू तुम अंबा।सदा दीन जन की अवलंबा॥ तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई।ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई॥ विश्वरूप तुम आदि भवानी।महिमा वेद पुराण बखानी॥ अति अपार तव नाम प्रभावा।जपत न रहन रंच दु:ख दावा॥ महाकालिका जय कल्याणी।जयति सदा सेवक सुखदानी॥ तुम अनन्त औदार्य विभूषण।कीजिए कृपा क्षमिये सब दूषण॥ दास जानि निज दया दिखावहु।सुत अनुमानित सहित अपनावहु॥ जननी तुम सेवक प्रति पाली।करहु कृपा सब विधि माँ काली॥ पाठ करै चालीसा जोई।तापर कृपा तुम्हारी होई॥ ॥ दोहा ॥ जय तारा, जय दक्षिणा,कलावती सुखमूल। शरणागत 'भक्त ' है,रहहु सदा अनुकूल॥