Geeta Gyan 4 - Man Hai Sharir Ke Rath Ka Sarthi
Ravindra Jain
2:59जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुं लोक उजागर जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुं लोक उजागर कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुंचित केसा कानन कुंडल कुंचित केसा प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा बिकट रूप धरि लंक जरावा लाय सजीवन (आ आ) लाय सजीवन (आ आ) लाय सजीवन लखन जियाये श्रीरघुबीर हरषि उर लाये जुग सहस्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फल जानू प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं जलधि लांघि गये अचरज नाहीं जलधि लांघि गये अचरज नाहीं सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डर ना अष्ट सिद्धि (आ आ) अष्ट सिद्धि (आ आ) अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करहु गुरुदेव की नाईं जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करहु गुरुदेव की नाईं जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करहु गुरुदेव की नाईं