Rukawat
Afkap
2:58सच बोल ये आवाज सुनने को तुम भी तरसे ना अभी खोल ना दरवाजे हो रहे हैं मेरे चर्चे ना तेरी खामोशी को टूटने में लगे जो गांड ना अगर ख़ुशी है कबूल तो ना ढूंढूं मुझे इन माफ़ी के पीछे अभी कैसे बताऊं क्या हो रहा है क्योंकि अभी टिप टिप नंगे से ना पानी चाँद से पूछा तुम क्यों आये अभी उसने बोला ये तो होना ही है था क्यों जाने देते हैं अपने साए नहीं हां मैना बोला शाम जब भी ढले मुझे रात लम्बी लगे और कोहरा सा चाए तभी तकिया जो सर को पर सोया नहीं जाए क्यूं की कान खराब होता है तभी वो बोले गए, ये एक रात में सटकी नहीं ये किश्तों में कांड तुम कर गए मिलने जाते हाथ वही काटने चले गए जो बड़े होते गए वो लंगटे चले गए हा रखना है याद घर बार में पल गए देखे मां बाप जो आस में लगे रहे बिचाने बैठे खाट और रख में चले गए औलाद की औकात को नापते चले गए दबाये अपने दर्द और पलटते चले गये तो बोतलें टूटी यहां पे अभी आदतें गंदी है पकड़ी करू आंखें बंद तो फिर लगे बाला ताली गै और तू भी अभी उसकी पलकें अब साफ कर दीए तूने कश्त अब उनका एहसास कर वो भी तुझे घूरे आज तू धुए मेई चुपके कैसे ढूंढता है अपनी ये राह अब बचपन की यादें अब तसवीरों में हैं कैद तो फासले बढ़ गए गड़े हुए मुर्दे भी जान छिड़कने लगे जो खादी की दीवार तुम फाँदने चले गए बताता नहीं हुं पर सच बोलु तोह उडे मात्र पर नहीं उदी बास नींदे और आंखें नहीं होती मेरी नाम पर ठीक है कलाम ने मेरी बड़े कुएं अभी देखे हैं बस घर ही आता ख़ुशी के नसीब में मां का पहला वीजा लग गया मेरी अब एक आस सी जगी है और एक आग भी लगी है आग भी लगी हैं