Hanuman Chalisa Superfast
Brijesh Shandilya
4:17श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना कूल | वरणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल | | जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी, दुष्ट दलन लीला अवतारी | जो कोई तुम्हरी लीला गावै, बिन श्रम सकल पदारथ पावै | श्री वसुदेव देवकी माता, प्रकट भये संग हलधर भ्राता | मथुरा सों प्रभु गोकुल आये, नन्द भवन मे बजत बधाये | जो विष देन पूतना आई, सो मुक्ति दै धाम पठाई | तृणावर्त राक्षस संहारयौ, पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ | खेल खेल में माटी खाई, मुख मे सब जग दियो दिखाई | गोपिन घर घर माखन खायो, जसुमति बाल केलि सुख पायो | ऊखल सों निज अंग बँधाई, यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई | बका असुर की चोंच विदारी, विकट अघासुर दियो सँहारी | ब्रह्मा बालक वत्स चुराये, मोहन को मोहन हित आये | बाल वत्स सब बने मुरारी, ब्रह्मा विनय करी तब भारी | काली नाग नाथि भगवाना, दावानल को कीन्हों पाना | सखन संग खेलत सुख पायो, श्रीदामा निज कन्ध चढ़ायो | चीर हरन करि सीख सिखाई, नख पर गिरवर लियो उठाई | दरश यज्ञ पत्निन को दीन्हों, राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों | नन्दहिं वरुण लोक सों लाये, ग्वालन को निज लोक दिखाये | शरद चन्द्र लखि वेणु बजाई, अति सुख दीन्हों रास रचाई | अजगर सों पितु चरण छुड़ायो, शंखचूड़ को मूड़ गिरायो | हने अरिष्टा सुर अरु केशी, व्योमासुर मार्यो छल वेषी | व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये, मारि कंस यदुवंश बसाये | मात पिता की बन्दि छुड़ाई, सान्दीपन गृह विघा पाई | पुनि पठयौ ब्रज ऊधौ ज्ञानी, पे्रम देखि सुधि सकल भुलानी | कीन्हीं कुबरी सुन्दर नारी, हरि लाये रुक्मिणि सुकुमारी | भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये, सुरन जीति सुरतरु महि लाये | दन्तवक्र शिशुपाल संहारे, खग मृग नृग अरु बधिक उधारे | दीन सुदामा धनपति कीन्हों, पारथ रथ सारथि यश लीन्हों | गीता ज्ञान सिखावन हारे, अर्जुन मोह मिटावन हारे | केला भक्त बिदुर घर पायो, युद्ध महाभारत रचवायो | द्रुपद सुता को चीर बढ़ायो, गर्भ परीक्षित जरत बचायो | कच्छ मच्छ वाराह अहीशा, बावन कल्की बुद्धि मुनीशा | ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो, राम रुप धरि रावण मार्यो | जय मधु कैटभ दैत्य हनैया, अम्बरीय प्रिय चक्र धरैया | ब्याध अजामिल दीन्हें तारी, शबरी अरु गणिका सी नारी | गरुड़ासन गज फन्द निकन्दन, देहु दरश धु्रव नयनानन्दन | देहु शुद्ध सन्तन कर सग्ड़ा, बाढ़ै प्रेम भक्ति रस रग्ड़ा | देहु दिव्य वृन्दावन बासा, छूटै मृग तृष्णा जग आशा | तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद, शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद | जय जय राधारमण कृपाला, हरण सकल संकट भ्रम जाला | बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी, जो सुमरैं जगपति गिरधारी | जो सत बार पढ़ै चालीसा, देहि सकल बाँछित फल शीशा | गोपाल चालीसा पढ़ै नित, नेम सों चित्त लावई | सो दिव्य तन धरि अन्त महँ, गोलोक धाम सिधावई | | संसार सुख सम्पत्ति सकल, जो भक्तजन सन महँ चहैं | जयरामदेव' सदैव सो, गुरुदेव दाया सों लहैं | | प्रणत पाल अशरण शरण, करुणा-सिन्धु ब्रजेश | चालीसा के संग मोहि, अपनावहु प्राणेश | |