Sunderkand
Prem Prakash Dubey
दिल ने फिर याद किया बर्क़ सी लहराई है दिल ने फिर याद किया बर्क़ सी लहराई है फिर कोई चोट मुहब्बत की उभर आई है दिल ने फिर याद किया वो भी क्या दिन थे हमें दिल में बिठाया था कभी और हँस हँस के गले तुम ने लगाया था कभी खेल ही खेल में क्यों जान पे बन आई है फिर कोई चोट मुहब्बत की उभर आई है दिल ने फिर याद किया क्या बतायें तुम्हें हम शम्मा की क़िसमत क्या है ग़मे के जलने के सिवा मुहब्बत क्या है ये वो गुलशन है कि जिस में न बहार आई है फिर कोई चोट मुहब्बत की उभर आई है दिल ने फिर याद किया हम वो परवाने हैं जो शम्मा का दम भरते हैं हुस्न की आग में खामोश जला करते हैं आह भी निकले तो प्यार की रुसवाई है फिर कोई चोट मुहब्बत की उभर आई है दिल ने फिर याद किया