Angad

Angad

Raanjha

Альбом: Angad
Длительность: 3:54
Год: 2025
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Текст песни

में देवराज इंद्र के पुत्र महाराज बाली का मैं पुत्र हूँ
मेरा नाम अंगद है
दशनंद रावण ये वही बाली है
जिन्होंने एक बार रावण नाम के किसी राजा को अपनी पूंछ में बांधकर पृथ्वी के कई चक्क्र लगाए थे
और उसे अपनी काख में दबाकर अपनी पूजा करते रहे
आज तुमकार अब इसने अपने जीने का अधिकार खो दिया
इसका सिर काटकर इसे रावण की शक्ति का आभास करा
हे लंकेश ये बेचारे क्या आपकी शक्ति मुझे दिखाएंगे?
मैं स्वयं आपको अपनी शक्ति दिखाता हूं
जय श्री राम

गाड़ दिया जो पैर सभा के बीच मचा वो कहर
वीरों की उस सभा में छाई सन्नाटे की लहर
साहस देखकर अंगद का सब चकित भय वो वीर
पूछे कि कौन भला ये मर्द ले रहा लंकापति से बैर
इसकी आंख में डर नहीं, ना देखा ऐसे निडर कहीं
हमुख पे तेज बालिसा देख रावण की सांसे थक गईं
आज इसके पिता ने दी थी रण में मात और दबा के काक में छह मास
काटेचक्क्र कर ब्रह्मांड के अहंकार का किया विनाश
पुत्र में उसकी छवि देख के आंखों में उसके रवि देख के
भय की लकीरें माथ पे जैसे कुंडली में बैठे शनि देव थे
बैठने को उसे दिया ना आसन रावण से ऊंचा सिंहासन
खुद बना के बैठा वो बालीपुत्र ना कोई वानर साधारण
लेकर श्री राम का नाम और दे दिया अंगद ने आह्वान को हिला दे पैर ये राम भक्त का
लगा के अपनी पूरी जान तो राम भी कर लेंगे स्वीकार
इन मात सीता को लिए ही हार और लौटेगी लंका से वानर सेना बिना किए कोई एक प्रहार
अंगद श्री राम का नाम ले अंगद
तू पैर गाड दे अंगद
तेरे बल का न सानी अंगद
बल बाली का साथ में अंगद
श्री राम का नाम ले अंगद
सिर पर दस समान है अंगद
हुकार तू भर ऐसी जंगल में जो शेर दहाड़ दे
महाराज रावण मैं अपना पैर आपके इस दरबार में जमा देता हूं
यदि आपका कोई योद्धा मेरे पैर को तिनका भर हिला भी दे तो में श्री राम की और से यह वचन देता हूं
कि वो अपनी पराजय स्वीकार करके इस लंका से वापिस लौट जाएंगे
जय श्री राम
ये सूर्य के सभी नील्या तत्पर घेरो, सोचा पल भई काट देगी ढेर
ये देख दृश्य फर्श से ही तो होता खड़ा जंगल में बेखौफ वो शेर
वो एक एक करके आने लगे जैसे शक्ति का प्रमाण लगे वो
लंकापति रावण की जय पर अंगद का ना पांव हिले
हां राम नाम की शक्ति का वहां ऐसा था प्रभाव पड़ा जो इंद्र को जीत के बैठा था
ना उसने तनिक भी पांव हिला
लंकापति की सभा के बीच में पैर जमा खड़ा सांस खींच के
मिट्टी पर लीत गए सुरवीरों की क्रोधित रावण दांत भींच के
सामने चाहे शत्रु की भीड़ क्यों मैं हार के मुख से जीत खींच लो
सर पे आशीर्वाद पिता का तो सभा को क्या संसार जीत लूं
दिया है मैंने वचन ये खुद को झुके नमस्तक पिता श्री का
परिस्थिति हो कैसी भी चाहे आंखों में ना खौफ किसी का
सुन के ये रावण खुद उठ गया पैर हिलाने को नीचे वो झुक गया
लात मारी अंगद ने एक थो मुकुट समेत अभिमान भी गिर गया
पैरों में गिर मत दास के आगे चरण प्रकट
श्रीराम के जाके समय से पहले मांग ले माफी
नहीं गिन के थकोगे लंका में लाशें
सिंहासन पर बैठे सिर नाही मानो संपत्ति सकल गवाई
जगदात्मा प्राण पति रामा तासु भी मुख्य मिले विश्राम
मुर्ख पेर ही पकड़ने हैं, तो जाकर श्रीराम के पैर पकड़
जिनके पैरो में मुक्ति का द्वार है मेरा पैर में क्यों गिरता है?
मेरी चुनौती आपके नहीं आपके योद्धाओं को थी
आपको तो मैं यही कहूंगा की श्रीराम से शमा मांग लीजिए
इसी में आपका कल्याण हे
में आपको सूर्योदय तक का समय देता हूं उसके पश्चात लंका ला विनाश निश्चित हे
जय श्री राम
अंगद। श्री राम का नाम ले अंगद
तू पैर गाड़ दे अंगद
तेरे बल का न सानी अंगद
बल बाली का साथ में अंगद
श्री राम का नाम ले अंगद
सिर पर दस समान है अंगद
हुकार तू कर ऐसी भैंसे शत्रु का राज फाड़ दे