Arjun

Arjun

Raanjha

Альбом: Arjun
Длительность: 4:29
Год: 2024
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Текст песни

हे संजय! उस असभ्य सूतपुत कर्ण के सामने दुर्योधन से कहना
कि यदि उसने इंद्र प्रस्थ नहीं लौटाया
तो रणभूमि में किसी सूखे हुए वृक्ष की भांति कट कर गिरा हुआ दिखाई देगा
महादेव की सौगंध जब मेरे वाणों की वर्षा होगी
तो अग्नि बरसेगी और वह अग्नि कुरुसेना और सेनापतियों को यूं जलाकर भस्म कर देगी
जैसे ग्रीष्मकली दू सूखी हुई घास को जलाकर राख कर देती है

जब धनुष पे चढ़ता बाण
तो लेता प्राण वो त्राहिमाम करा दे
ले मुख पे तेज स्वयं महादेव का
रण में आग लगा दे
हाँ सुनके नाम धनंजय अर्जुन
काल भी भय से कांपे
निकले अकेला युद्ध में शत्रु सेना में
हाहाकार मचा दे
वो भेदना जाने व्यूह सारे
हो सर्प गरुड़ या चक्रव्यूह
वो एक अकेला सेना खुद में
भेद न पाए कोई अर्जुन व्यूह
महाकाल भी जिसकी करते प्रशंसा
सृष्टि में ऐसा पुरुष न दूजा
भेदने गया आकाश में लक्ष्य
तो लक्ष्य सिवा न कुछ सूझा
जब रण में आगे वीर बढ़े
तब सब शत्रु भयभीत दिखे
गाण्डीव से निकले जब जब तीर
तो रणभूमि भी चीख उठे
पांचाल युद्ध हो या विराट या
महाभारत क्या रण वो सजे
जिस रणभूमि में रख दे कदम
फिर युद्ध का वही परिणाम लिखे

महादेव की सौगंध यदि में चाहूँ तो उस महारथियों से भरी हुयी कौरव सेना को
अपने दिवय यासतो के प्रयोग से एक ही क्षण में नष्ट कर सकता हूँ
किन्तु में अपने दिवय यासतो का प्रयोग करके उन्हें महाजित नहीं करना चाहता
में इतिहास को ये कहने का अवसर  नहीं दूंगा के ये युद्ध अर्जुन ने नहीं दिवय यासतो ने जीता है

बाणों से उसके अग्नि बरसे
बस टंकार से ही बिजली गरजे
श्वेत अश्व ले चार वो रथ पे सवार
तो यम भी रास्ता बदले
वो पाशुपतास्त्र धारी
जिसका सारथी स्वयं गिरधारी
हाँ फिर रथी, महारथी, अति महारथी
सामने उसके लगे अनाड़ी
कुरुक्षेत्र में हुआ हिसाब
वो मरा जो भी हो लड़ा खिलाफ
भूमि गगन न कुछ छोड़ा
जहाँ धनंजय ने न किया विनाश
इंद्र बराबर लगे सिंहासन
भारतवर्ष में बाजे डंका
ऐसा वीरों में वीर पितामह
द्रोण कर्ण भी करें प्रशंसा

मैं गुरु श्रेष्ठ परशुराम का शिष्य हूं
मैंने अपनी विजय यात्रा में भारतवर्ष के समस्त राजाओं और वीरों को पराजित किया
परंतु जब जब अर्जुन से मेरा सामना हुआ है, तब तब मेरे भाग्य में पराजय है
मैं भी परशुराम शिष्य हूं अंगराज और गंगापुत्र भी परशुराम शिष्य है
मुझे तुम्हारी वीरता पर संदेह नहीं है
किंतु अर्जुन फिर भी अर्जुन ही है

वायु गति से युद्ध करे
और अर्जुन के जब तीर चले
जब तीर चले गांडीव से तो
न वीर दिखे न तीर दिखे
फिर वीर, शूरवीर कोई भिडे
वो पल पल मृत्यु से ही डरे
वो कांपे थर थर सामने मंज़र
मंज़र मृत्यु का ही दिखे
महादेव को भी जो कर दे प्रसन्न
है भुजा में ऐसा बाहुबल
वो रूप से मोहित कर दे उर्वशी
बुद्धि से भी चतुर, चपल
हुआ न जग में धनुर्धारी
जो धनंजय को कर दे परास्त
वो शब्द भेदी साधे बाण ऐसे
अंधकार में भी कर देता खाक
हाँ आर पार करे बार बार
जब जब सुने युद्ध की ललकार
और एक बार मिले आवाहन
फिर तो होता नरसंहार
हाँ रथ पे संग ले नारायण
ध्वजा पे बिठाए मारुति
दी धर्म की रक्षा की खातिर
अपनों के प्राणों की आहुति

संसार की कोई भी सेना उस सेना को नहीं हरा सकती जिसके और से अर्जुन युद्ध कर रहा हो
अर्जुन को मुझपर छोड़िये आचार्य न भड़काओ अपने मित्र दुर्योधन को न भड़काओ
पर होनी क्या हम सब मिलकर भी अर्जुन का सामना नहीं कर सकते
बस मेरा युद्ध और तुम्हारा मित्र दुर्योधन भी था
जो आज इस सभा में बैठ कर यह ढींगे मार रहा है
कि वह अर्जुन की जीवा काट कर अपने धनुष की प्रत्यंजा बना लेगा हैं
दांडी पे भारी अर्जुना महेशा, साहन, जया दांडी पे भारी अर्जुना, साहन, जया