Ramdoot Hanuman
Raanjha
4:06कौन है जो सामना हां मेरा कर सके कितने आए पहले और कितने ही मर चुके कैद रखता नवग्रह को मुट्ठी में मेरी बिगाड़ दूं भविष्य तेरा जब भी मन करे त्रिलोक जीत के हूं बैठा में त्रिलोक जीत के हूं ऐंठा में हर दिशा में रखता भय बना के त्रिलोकपति हूं इकलौता में जो देता चुनौती युद्ध की मुझे उसे मृत्यु ही बस देता मैं जिस पर भी रख दूं दृष्टि मेरी उसे हासिल करके रहता में मैं स्वर्ण लंका का आधिपति तू दर-दर भटके वनवासी क्यों कर रहा सामर्थ्य युद्ध का क्या मृत्यु का तू अभिलाषी जा भूल जा अब सीता को स्वयं तू मैं चाहूं जब तेरा वध करदू मेरा पराक्रम ब्रह्मा भी जाने मैं क्रोध में सूर्य को भस्म कर दूं अरे ओ लंकापती तेरी मरी मति तू जो अंहकार में बना हठी और कुदृष्टि डाली परनारी पे पाप के घड़े तेरे भरे सभी बेशक है बलवानी तू और वेद पुराणों का ज्ञानी तू पर ज्ञान भी वो पूरा व्यर्थ जिसमें तू भूल बैठा मर्यादा ही अरे इतना ना तू जान पाया तेरी मृत्यू को तू स्वयं लाया जिस शक्ति पे है तू करता घमंड तेरे घमंड को मैं तोड़ने आया तेरी लंका पे अब काल छाया तेरे काम ना आए कोई तेरी माया तेरे हर मुख पे अब साफ दिखे तेरी आंखों में जो भय समाया हे दशानन तेरे दस आनन मैं काट करूंगा ये भू पावन तेरी मृत्यू बनके आया है ये वनवासी एक साधारण तेरे कर्मो का हिसाब होगा तेरे कुल का अब विनाश होगा जब निकलेगा मेरे चाप से बाण तो धड़ से अलग सिर आज होगा जो झुक जाए राम वो रावण नहीं कोई शत्रु मैं तेरा साधारण नहीं शिव शक्ति संग कैलाश उठाया वैकुंठ में डरे नारायण भी जो मारदे मुझे वो जन्मा नहीं हे वनवासी तेरे बस का नही जब चलता हाथी मतवाला कीड़ों पर गौर वो करता नहीं महाकाल का हूं मैं परम भक्त ये शीश काट उन्हें अर्पण कर दिए तू क्या जाने सामने मेरे देवेंद्र ने भी शस्त्र रख दिए मेरे जीवन दान से जीते ग्रह नक्षत्र देवता भी और नाम मेरा ना मिटा सकेगा त्रेता द्वापर कलयुग भी तेरे स्वांस पूर्ण हुए जीवन के जो लड़ने आ गया रावण से यह वानर भालू बेचारे अब मरेंगे सब बिन कारण के नारायण के भी ना पास मिले वो अस्त्र मैं रखता तरकश में तू लंका की भूमि पर आया पर जा नहीं पाएगा बचकर के मैंने अवसर तुझको दे दिए बहुत तेरी मृत्यू का अब तुझपे ही दोष ये धरती भी ना उठा पाए अब पापी तेरे पाप का बोझ मेरे बाणों में तेरी मौत देख तेरे नेत्रों में तू खौफ देख जो बली तूने देदी लंका की मरते तू अब तेरे लोग देख अब करले तू चाहे जितने जतन तू बचा ना पाए तेरे कुल का पतन शमशान बनेगी ये भू लंका की चारों और होगा सिर्फ रूदन लाशों के लाखों ढेर होंगे अब दिन भी यहां अंधेर होंगे इस राम की देखी करुणा सबने क्रोध भी यहां अब सब देखेंगे महादेव का बनता परम भक्त महादेव भी ना तेरी करेंगे रक्षा नाभी में जो अमृत तेरी वो भीना जीवन अब दे सकता जो आज ये हो रहा है सर्वनाश तेरा अहंकार ही इसका कारण धर्म और पाप का युद्ध है ये तेरी मृत्यु से होगा तेरे कुल का तारण सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा॥ लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा॥