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Raga - Sheher | Скачать MP3 бесплатно
Sheher

Sheher

Raga

Альбом: Sheher
Длительность: 3:31
Год: 2022
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Текст песни

आह, check, check, check
आह

बचपन से घर के बाहर लड़के चार
पापा सुन ले तो मिलता सर पे भरके प्यार
करके दरकिनार सबके पैर पड़ते भार
वो पहला प्यार पहला वो खुमार
पहले खुश का वो बुखार
याद है पार्क भसड़ में पहला करना सीखा वार
ना तीज़ ना त्योहार
बैठे करते झांझ
करते सब बखान किस फलाने ने है तोड़ी किसकी गांड
किसपे लग रहा कितने का सामान?
किसपे लग रही कितनी धारा किसने काट ली तिहाड़?
किसका चढ़ता पहले पारा?
कौन करता किसको कॉल?
किसपे कितने लड़के किसकी कितनी चौड़?
तूती बोले किस मोड़ पे है किसकी इतनी बोल?
रागा
निकले रात को जो लड़के घर में
घुसते हैं सहर में
मेरे शहर में
होते कांड सरे-आम
सड़कें सूनी हैं कहर में
मेरे शहर में
निकले रात को जो लड़के घर में
घुसते हैं सहर में
मेरे शहर में
होते कांड सरे-आम
सड़कें सूनी हैं कहर में
मेरे शहर में फैली बेचैनी
एक है नहीं जिसपे सर पे केस है नहीं
काटे कलस वहमी
बातों में वेट है नहीं
बातों में हेट फैली
रातों में गेट तोड़
फिर बनने चले ये कैदी

कौन किसको सिखाता है कौन किसको बताता
मैं जॉब करके कमाता था पर ना करने का इरादा
गलियों ने दिए गलत नशे जैसे मरने का वादा
गलियों ने सपने भी दिए तो पूरे करने वादा था
पन्ने भरने से ज़्यादा तो बंदे भरने का खाता था
जिसका प्रिंसिपल बदमाश वो फिर क्या ही कर पाता
वो सोचते थे
वो सोचते आज भी उतना ही
ग़लत साबित करता आया पर
टेका कभी घुटना नहीं
पर मेरा भी उठता नहीं मन
गिरने पे झुकता नहीं
रुकना पड़ता पर रुकता नहीं
जितना करता बस उतना सही
लिखता पढ़ता पर बुक तो नहीं
सुख ना मिलता तो सुट्टा सही
थूकना पीटना पर मिटना नहीं
पुश्ते चलना पर पिसना नहीं क्या?

समय के साथ-साथ रोज़ मैं हूं चल रहा
हूं सबसे तेज़ फिर भी आज क्यों मैं जल रहा
ये सच है मेरा मुझसे तू है क्यों ये सुन रहा
क्या देखा मुझको मुस्कुराता? जो तू यूं मचल रहा
मेरे गाने सुन के आज हर लड़का मल रहा
माल को रगड़ रहा
बाप से अकड़ रहा
कोई अपने आप से ही लड़ रहा
आज इतना जो है चल रहा ये कल ना था
ना ये मेरी कल्पना
ना ये मेरी सल्तनत
पर हैं बंदे अंगिनत
जिनको मुझपे कल था शक
पर आज साथ है और साज़ है वो ज़िंदगी का
ना रिश्ता तोड़ता ना जोड़ता ना हूं मसीहा
मैं करता बात सीधी साफ़ शब्दों में कमीना
चिढ़ सी होती खुद को देख सामने जो शीशा
गांजे और हशीश का
माल तो अज़ीज़ था
पर मां ने सोचा ना था कि बेटा ऐसा कभी होगा
लेगा कुश जो
बढ़ने लगते कष्ट तो
कड़वे लगते सच
मुझको भड़वे लगते सब लोग
जितने भी हैं आस-पास सारे मुझको बख़्श दो
पर जितने भी हैं ख़ास मेरे, सारे मुझको लक्ष्य दो
रागा