Kalyug Ka Manav
Lucke
3:57सुनो कहानी साथ मेरे तुम इस कलयुग की नारी की दिखावे की इस दुनिया में परवाह इसे दिखावे की झूठी दुनिया में उलझी असलियत से दूर गई आधुनिक दुनिया की नारी संस्कृति ही भूल गई हे कलयुग की नारी तुम कैसे इतना बदल गई कैसे इतना बदल गई कैसे इतना बदल गई क्या हो रहा है आस पास और कैसी दुनिया सारी है नशे पत्ते में लिप्त बैठी कैसी आज की नारी है आधुनिक दुनिया की नारी सोचे सब पर भारी है पर असल में ये सोचे तो ये नारी की लाचारी है कई बार होता है प्रेम इन्हें कई बार टूट फिर जाता है अपनों का रिश्ता छोड़ के रिश्ता गैरों का क्यूँ भाता है कुछ नारी है जो आजकल छोटे वस्त्रों में आती है लोकप्रिय बनने को वस्त्रो से अंग दिखाती है अब ऐसी नारी होती है जो मर्यादा ना रखती है पढ़ने लिखने के नाम पर छल घरवालों से करती है कर्तव्यों को जो भूल के बैठी कुमार्ग पर जाती है कम उम्र की लड़कीयाँ बचपन में इश्क़ लड़ाती है संबंध बनाती कई बार संस्कृति से भी दूर गई जो गहना होती स्त्री का वो लाज शर्म भी भूल गई भूल गई वो मर्यादा जो एक स्त्री में होती है मात पिता को दुख देके किसी ग़ैर के ख़ातिर रोती है ये जाने ना पहचाने ना इंसान के रंग रूप को प्रेम करती उनको जिनको केवल तन की भूख हो मन से किसको प्रेम है और तन की किसको आशा कौन करता है प्रेम इन्हें और कौन करे छलावा सही ग़लत में अंतर भी अब नारी को है ज्ञात नहीं जैसे पहले होती थी अब नारी में वो बात नहीं नशे में डूबी रहने वाली महख़ानो में रहती है दिखावे की इस दुनिया में दिखावे में ही जीती है संस्कृति से कोई काम नहीं यें सोचे आज की नारी गर्व होता इनको जैसे छोटे कपड़ों में आज़ादी क्युँ बदल गया ये वक़्त कैसे बदल गये लोग छोटे हुए कपड़े या फिर छोटी हुई सोच नये जमाने वाली माँ देती बच्चों पर देती ध्यान नहीं अपराध को जो रोक सके देती ऐसे संस्कार नहीं ये ऐसी नारी है जिसको परिवार की ही ना चिंता है अरे कैसी नारी है जिसमे नारीत्व ही ना दिखता है हाँ नारी तो वो जो होती थी जो काल को भी मात दे अपने स्वामी के ख़ातिर वो जो राजपाठ भी त्याग दे दण्डवत प्रणाम है मेरा उस विकराल सी नारी को खूब लड़ी मर्दानी वो उस झाँसी वाली रानी को वो उतरे जब मैदान में तो खून की नादिया बहती थी और क्या ही हिम्मत होगी उस रानी मैं जो ये कहती थी के प्राण भले ही जाये मेरे पर दामन पर ना दाग लगे मेरी देह की इच्छा रखते जिनके हाथ मेरी ना राख लगे हमारे शरीर को पाने के लाख कोशिश करे हमारे शत्रु को हमारी परछाई तक नहीं लगेगी जिस अग्नि को साक्षी मान साथ जीने और मरने का वचन लिया था हम अपने अस्तित्व के लिए सौंप देंगे खुद को इस अग्नि में वो रानी पद्मिनी थी जिसने अग्नि में स्नान किया अपने पति के दर्जे पर ना दूजे को स्थान दिया वो एक सती सावित्री जिसने यम से खींचे प्राण एक आज की नारी जो ले जाती यम के द्वार हे कलयुग की नारी तुम अस्तित्व कैसे भूल गई पुरखों की मर्यादा से तुम कैसे इतना दूर गई क्यों भूल गई वो संस्कार जिसमे जीने में मान हो क्यों भूल गई शृंगार जिसमे हाथ में ना तलवार हो हे मेरी माता बहनों तुम संस्कृति के अब साथ चलो स्वयं को पहचानो जिज़ाबाई जैसी मात बानो अरे वो भी नारी ही थी जिसने छत्रपति तैयार किया वो हाड़ी वाली रानी जिसने शीश थाल में सजा दिया वो पन्नाधाय जो राजहित में पुत्र का बलिदान दिया नारी बनो वैसी जिसने महाराणा प्रताप बना दिया क्यूँ लगी हो नशे में तुम क्यों कच्चे वाले प्रेम करो तुम प्रेम यदि करना चाहो तो मात सती सा प्रेम करो कर्म यदि करना चाहो तो सीते माँ सा कर्म करो जो साथ रहे वन में भी ऐसे धर्म सा सत्कर्म करो हे नारी बदलो ख़ुद को तुम संस्कृति की भी लाज रखो संसार तुम्हारे हाथों में अब मर्यादा का मान रखो प्रेम का स्वरूप हो तुम विश्व जगत की जननी हो अर्धांगिनी कहलाने वाली तुम ही जीवन संगिनी हो मेरी मंशा अंतिम बात से कुछ सीख तुम्हें सिखाने की नतमस्तक है याचना जरा सोचो इसे निभाने की ग़ैर मर्द को हे नारी ना सोचो मित्र बनाने की पति की बाते टालकर ना मानों सीख जमाने की अरे गया द्वापर जब द्रौपदी के सखा कृष्ण होते थे ये कलयुग है माता बहनों यंहा मर्द सखा ना होते है यंहा मर्द सखा ना होते है