Hum Katha Sunaate Ram Sakal Gun Dhaam Ki

Hum Katha Sunaate Ram Sakal Gun Dhaam Ki

Ravindra Jain

Длительность: 14:38
Год: 2020
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Текст песни

ॐ श्री महागणाधिपतये नमः
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्याय नमः

वाल्मीकि गुरुदेव के पद-पंकज सिर नाय
सुमिरे मात सरस्वती, हम पर होऊ सहाय
मात-पिता की वंदना करते बारम्बार
गुरुजन, राजा, प्रजा-जन, नमन करो स्वीकार

हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावरते, भारतवर्षे
एक नगरी है विख्यात 'अयोध्या' नाम की
यही जन्मभूमि है परम पूज्य श्री राम की

हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

रघुकुल के राजा धर्मात्मा
चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा
संतति हेतु यज्ञ करवाया
धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया

नृप घर जन्मे चार कुमारा
रघुकुल दीप जगत आधारा
चारों भ्रातों के शुभ नामा
भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, रामा

गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके
अल्पकाल विद्या सब पाके

पूरन हुई शिक्षा रघुवर पूरन काम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

मृदु स्वर, कोमल भावना, रोचक प्रस्तुति ढंग
एक-एक कर वर्णन करें, लव-कुश, राम प्रसंग

विश्वामित्र महामुनि राई
इनके संग चले दोउ भाई
कैसे राम ताड़का मारी
कैसे नाथ अहिल्या तारी

मुनिवर विश्वामित्र तब संग ले लक्ष्मण, राम
सिया स्वयंवर देखने पहुँचे मिथिला धाम

जनकपुर उत्सव है भारी
जनकपुर उत्सव है भारी
अपने वर का चयन करेगी सीता सुकुमारी
जनकपुर उत्सव है भारी

जनकराज का कठिन प्रण
सुनो-सुनो सब कोई
जो तोड़े शिव धनुष को
सो सीता पति होई

को तोरे शिव धनुष कठोर?
सब की दृष्टि राम की ओर
राम विनयगुण के अवतार
गुरुवर की आज्ञा सिरधार

सहज भाव से शिव धनु तोड़ा
जनक सुता संग नाता जोड़ा

रघुवर जैसा और ना कोई, सीता की समता नहीं होई
दोउ करे पराजित कान्ति कोटी रति काम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की
ये रामायण है पुण्य कथा सिया-राम की

सब पर शब्द मोहिनी डारी
मंत्रमुग्ध भए सब नर-नारी
यों दिन-रैन जात है बीते
लव-कुश ने सब के मन जीते

वन गमन, सीता हरन, हनुमत मिलन
लंका दहन, रावण मरण, अयोध्या पुनर्आगमन

सविस्तार सब कथा सुनाई
राजा राम भए रघुराई
राम राज आयो सुखदायी
सुख-समृद्धि, श्री घर-घर आई

काल चक्र ने घटना क्रम में ऐसा चक्र चलाया
राम-सिया के जीवन में फिर घोर अंधेरा छाया

अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने
मिथ्या दोष लगाया
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया

चल दी सिया जब तोड़ कर सब नेह, नाते मोह के
पाषाण हृदयो में ना अंगारे जगे विद्रोह के
ममतामयी माँओं के आँचल भी सिमट कर रह गए
गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर भी घट कर रह गए

ना रघुकुल, ना रघुकुल नायक
कोई न सिया का हुआ सहायक
मानवता को खो बैठे जब सभ्य नगर के वासी
तब सीता को हुआ सहायक वन का एक सन्यासी

उन ऋषि परम उदार का 'वाल्मीकि' शुभ नाम
सीता को आश्रय दिया, ले आए निज धाम

रघुकुल में कुलदीप जलाए
राम के दो सूत सिय ने जाए

श्रोता गण, जो एक राजा की पुत्री है, एक राजा की पुत्रवधू है
और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है
वही महारानी सीता, वनवास के दुखों में अपने दिन कैसे काटती है
अपने कुल के गौरव और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए किसी से सहायता माँगे बिना
कैसे अपने काम वो स्वयं करती है, स्वयं वन से लकड़ी काटती है
स्वयं अपना धान कूटती है, स्वयं अपनी चक्की पीसती है
और अपनी संतान को स्वावलंबी बनने की शिक्षा कैसे देती है
अब उसकी करुण झाँकी देखिए

जनक दुलारी, कुलवधु दशरथ जी की
राजरानी होके दिन वन में बिताती है
रहते थे घेरे जिसे दास-दासी आठों याम
दासी बनी अपनी उदासी को छुपाती है

धरम प्रवीन सती, परम कुलिन सब
विधि दोषहीन जीना दुख में सिखाती है
जगमाता, हरि-प्रिय, लक्ष्मी स्वरूप सिया
कूटती है धान, भोज स्वयं बनाती है

कठिन कुल्हाड़ी लेके लकड़ियाँ काटती है
कर्म लिखे को पर काट नहीं पाती है
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था
दुख भरे जीवन का बोझ वो उठाती है

अर्धांगिनी रघुवीर की वो धर धीर
भरती है नीर, नीर नैन में ना लाती है
पीस के प्रजा के अपवादों के कुचक्र में वो
पीसती है चाकी, स्वाभिमान को बचाती है

पालती है बच्चो कों वो कर्म योगिनी की भाँति
स्वाभिमानी, स्वावलंबी, सफल बनाती हैं
ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते, दुख देते
निठुर नियति को दया भी नहीं आती है

ओ, उस दुखिया के राज दुलारे
हम ही सूत श्रीराम तिहारे
ओ, सीता माँ की आँख के तारे
लव-कुश हैं, पितु नाम हमारे

हे, पितु भाग्य हमारे जागे
राम कथा कही राम के आगे