Ranjheya Ve
Zain Zohaib
4:39ओ साहिब तेरे नाम की मैं गल विच माला पाई ए मेरी आशिक अखियां नू दाढ़ी तेरे हिज्र ने आतिश लाई ए हो कासा-ए-इश्क ले के यार की खोज में निकले दो नैन दीवाने ये किस मौज में हैं निकले ओ साहिब, ओ साहिब तेरी बांधी हूँ मैं ओ साहिब, तू जीता जिंद सारी हारी मैं कभी ऐसा भी हो रूबरू तुम बैठो हमारी आंखों से ज़रा ख़ुद को देखो कभी ऐसा भी हो रूबरू तुम बैठो हमारे दिल की लगी लगे तेरे दिल को हो पर्दा-ए-दिलपोशी जाम-ए-चाहत नोशी मैं इश्क के सर चढ़ बोलूं या ओढ़ूं ख़ामोशी तुझसे क्या पर्दा करूं तू मेरा आईना तेरी दीद चखूं तो लगे जैसे अमृत पीना ओ वे इश्का, वे इश्का हीरा रांझे खाले वे इश्का, वे इश्का तेरे दर्द निराले कभी ऐसा भी हो रूबरू तुम बैठो हमारी आंखों से ज़रा ख़ुद को देखो कभी ऐसा भी हो रूबरू तुम बैठो हमारे दिल की लगी लगे तेरे दिल को