Afsanay
Talhah Yunus
5:44दिल के किसी कोने में ही यादें तेरी मैंने छुपा रखी है छुपा रखी है भूला नहीं, तू भी मुझे बातें यूं ही मैंने बना रखी है बना रखी है समाया था दिल में वह ऐसे अनजाने दो मिलते फिर कैसे तुम बारिश में भीगे हम बेहता समंदर किनारे जोह रहता उम्मीदें लगा कि वह बैठे जो अपनों की घुम वह भी सेहतय यह दुनिया तोह चाह्ती के बेहकेँ यह बारिश यह खुशबू से मेहकेँ मिले दर्द बहुत कभी तू भी मिल दिल में रहती नहीं जानम तू ही दिल आज फिर आई ना तू इंतज़ार रहा मुश्किल तवील है ग़म की शाम कहानी मोहब्बत की मुख़्तसर नज़र से नही करो ज़रा सी क़दर करो मेरी कला की जाने वाले चले जाते हैं किस्मत एहि तो काबू में नहीं आती छाऊँ में धूप की तरह जिस्म में रूह की तरह गुज़रे दिमाग़ से याद तेरी लगातार लहू की तरह अब खाये जायें ये दर और दीवार मुझे किसी भूक की तरह तेरे बिना नहीं घर भी घर अकेले महसूस ये किया तेरी कमी पूरी हुई ना आज भी रही एक दिल में खला खिज़ा भी आयी पर वक़्त और ज़ुल्म का बाघ भी रहा ना हरा तेरा ही आइतबार बाकि सारी दुनिया पे भरोसा नहीं बना तू मुज मैं देखय इंसान बाकी सारी दुनिया को दिखे बस कला तू है मैं हु और गहरी ख़ामोशी हम दोनों ही नहीं सुनतेजोह कुछ भी यह कहती होगी गली यह दिल की टांग अब तेरा उस मैं आना ना हो दिल के मोहल्ले में अब तेरे मेरा जाना ना हो तू है!, मैं हूँ और सिर्फ फसले हैं राप्ते मुनक़ता और मुंतज़िर हम आपके हैं राज़ ही नहीं राज़दार भी किया माँगते हम खामियो पे परदे लोग कंही यहाँ डालते हैं हम सिहाने रख के ख्वाब रातें जागते हैं हम तुम्हें तुम से बोहोत बेहतर जानते हैं सरगोशी में लौं नाम तेरा तेरे लिए मैंने हाय राखी है हाय राखी है भूला नहीं मैं भी तुझे मेरे लिए, मैंने सज़ा रखी है सज़ा रखी है ज़िन्दगी पे लिख चुके है फ़लसफ़े इतनी दिन लगी की खुदको ही ना पढ़ सके बेक़दर तू दरबदर यूँ बेखबर ही चल पड़े यादें खींचती है आगे ही ना बरध सके साधगी बन चुकी है बढ़ज़्ही मुंतज़र खड़े उसी मुकाम पे हम आज भी आज फिर तू आयी नहीं आज फिर तू शायरी आज फिर तू एक गुमां याद तेरी खये गहि यह थी मेरी रज़ा अब दुआ बन गयी ऐ मेरे खुदा किया साजा बार्ड गयी मैं जागूँ सारी रात वह सुभह बन गयी गरज के बरास्ते अब यह बादल नहीं तू मेरे हर दर्द की दवाह मैं धुप में खर्डा महसूस कर ज़रा मौसम बदलते वे देखें हैं लोगों के बदलते रूप की तरह शामिल हैं अब तेरी देवारों में मिलाएँ गई ख्वाबों में रहतें ख्यालों में उलझे सवालों में क्या तुम पहचानो गे या फिर मेहमानों से कैसे भरोषा करैं अब इंसानोँ पे तुहि ख्वाब, तुहि मेरी ख्वाइश तुहि एहसास मैं बयाबान तू बारिश मिलेंगे फिर कभी उम्मीद भी तू आस भी खुली किताब करते ज़खमोहन की नुमाइश खानी कहा खत्म होती है पूरी नहीं हर कसम होती है फिर मिलेंगे कभी अजनबी की तरह इस आस में दिल ने सुबह राखी है सुबह राखी है सुबह राखी है